मंगलवार, 31 जुलाई 2012

साहित्य, कला और संस्कृति



किसी समुदाय के रीति-रिवाजखान-पानपहनावासामुहिक आदतेंसंस्कारमनोरंजन के साधन और किसी हद तक शिक्षा पद्धति भी संस्कृति के अंतर्गत आते हैं। संक्षेप में सभ्यता के दौर में इंसान के समग्र अनुभवों का खजाना ही संस्कृति है। बन्दर से आधुनिक मनुष्य बनने तक अर्थात पुराने कबिलाई समाजराजाओं-सामन्तों के शासनअँग्रजों की गुलामी और उसके खिलाफ संघर्ष से लेकर आजादी के बाद आज तक हमारे देश के विविध इलाके के लोगों का समस्त अनुभव ही वहाँ की संस्कृति है। मनुष्य जिन्दा रहने की न्यूनतम जरूरत पूरा करने के पहले और बाद जो चीजें  करता है वह संस्कृति है। जैसे पुराने समाज में शिकार के बादवह सामुहिक रूप से उसकी नकल (अनुकृति) करता थायहीं से नाटक पैदा हुआ। कोयल के कूकनेबादल के गरजने और हवाओं के चलने की नकल करके इंसान ने संगीत सीखा। सामंती समाज में धौकनी-फुकनी और जाते-मूसल के साथ का संगीत आया। औरतें जाते से पिसाई करती थीं। मेहनत को हल्का करने के लिए गाना गाती थीं। जाते-मूसल के उतार-चढ़ाव के अनुसार लय  में उतार-चढाव होता था। संगीत मुख्यतः मनोरंजन के लिए और श्रम को आसान करने के लिए था। आज पूँजीवादी व्यवस्था ने इन सबको एक ही झटके में खत्म कर दिया। इनके स्थान पर इसने आज केवल एक संस्कृति लागू कर दी है उपभोक्तावादी संस्कृति।